भाग्य चक्र बदलता रहता है इसमें सम रहना चाहिए यह भगवान श्री कृष्ण ने गीता में लिखा है " alt="" aria-hidden="true" />
भोपाल। विश्व जागृति मिशन भोपाल मंडल द्वारा लालपरेड मैदान में आयोजित विराट भक्ति स़त्संग के अंतर्गत दूसरे दिन आचार्य श्री सुधांशु जी के सत्संग में भगवान श्री कृष्ण के उद्देश्यों की व्याख्या करते हुए आचार्य श्री सुधांशु जी ने बताया कि हम अपने जीवन को कैसे अधिक सुखी बना सकते हैं ।
महाराजश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि वस्तुएं उपयोग के लिए होती है, इनमें इतना जुड़ाव ना हो कि उनके छूटने पर आप टूट जाएं। गीता के श्लोक की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि हमें डर रहित सखाभाव, करुणा भाव रखना चाहिए। वस्तुओं से आसक्ती ना रखें । अहंकार रहित होकर जीवन जीते हुए सुख दुख में संतुलन बनाए रखेंगे वही भगवान का सबसे प्यारा होता है और उसका जीवन सार्थक होता है।
आचार्य सुधांशु जी ने बताया कि यह संसार व्याकुलता में जी रहा है क्योंकि वह जो चाहता है उसे नहीं मिलता । इससे उसकी असंतुष्टि बढ़ती है और इस असंतुष्टि से जीवन में कष्ट बढ़ते रहते हैं इसलिए हमारी प्रसन्नता हमारे भीतर है लोग उसे बाहर ढूंढते हैं। भीतर की प्रसन्नता आवश्यक है ।
आनंद के लिए ध्यान की और ध्यान के लिए गुरु की आवश्यकता है। व्यक्ति को संतुलन बनाकर लगातार अपना कार्य करना होता है तभी सिद्धि मिलती है । हमें सफलता की कीमत चुकानी होती है, जो कीमत नहीं चुकाते वह सफलता से दूर रहते हैं।