भोपाल । कान्हा टाइगर रिजर्व में बारासिंघा का पुन:स्थापन विश्व की वन्य-प्राणी संरक्षण की चुनिंदा सफलताओं में से एक है। कान्हा में हार्ड ग्राउण्ड बारासिंघा मात्र 66 की संख्या तक पहुँच गये थे। प्रबंधन के अथक प्रयासों से आज यह संख्या लगभग 800 हो गई है। अवैध शिकार और आवास स्थलों के नष्ट होने से यह प्रजाति विश्व की कुछ अति-संकटग्रस्त वन्य-प्राणी प्रजातियों में शामिल है। मध्यप्रदेश का यह राज्य पशु अब आपेक्षिक तौर पर सुरक्षित हो गया है लेकिन कान्हा प्रबंधन इसे पर्याप्त नहीं मानते हुए लगातार बारासिंघा संरक्षण के प्रबंधकीय उद्देश्यों की ओर अग्रसर है। विश्व में केवल कान्हा टाइगर रिजर्व में बचे हार्ड ग्राउण्ड बारासिंघा को अन्य स्थानों पर भी बढ़ाने के उद्देश्य से हाल के सालों में 7 बारासिंघा भोपाल के वन विहार राष्ट्रीय उद्यान और 46 को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व भेजा गया है। वहाँ भी इनकी संख्या बढ़ी है। भारत में बीसवीं शताब्दी में बारासिंघा की आबादी में एक अत्यंत चिंतनीय बदलाव देखा गया था। इस दौरान नर्मदा, महानदी, गोदावरी और सहायक नदियों की घाटियों में खेती की जा रही थी। बारासिंघा के समूह जैविक दबाव के कारण बिखर गये थे और व्यावसायिक एवं परम्परागत शिकारियों के भय से ये काफी अलग-थलग हो गये। इससे इनकी संख्या तेजी से कम होती चली गई। वर्ष 1938 में वन विभाग द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र और आसपास लगभग 3 हजार बारासिंघा थे। इसके बाद से बारासिंघा की संख्या में लगातार गिरावट आती गई और वर्ष 1953 में हुए आंकलन में यह संख्या 551 और वर्ष 1970 में मात्र 66 पर सिमट गई।
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देश का ऑटोमोवाइल सेक्टर जल्द ही सवसे वड़े हव के रूम में अपनी पहचान वनाएगा। यह दावा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने किया है। उन्होंने कहा कि पांच वर्ष में भारत का ऑटोमोवाइल क्षेत्र दुनिया में पहले नंवर पर पहुंच जाएगा।