भोपाल । "गीत ब्रह्म की तरह अजर अमर है । जब तक यह सृष्टि रहेगी गीत का अस्तित्व रहेगा" यह कहना था जबलपुर से पधारे वरिष्ठ गीतकार डाॅ. राज कुमार "सुमित्र" का जो मध्यप्रदेश लेखक संघ की प्रादेशिक गीत गोष्ठी में सारस्वत अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे । आपने कहा कि गीतकार कोमल भावनाओं का समुच्चय है जिसकी दृष्टि में समूची सृष्टि रहती है और वह सृष्टा भी होता है । गोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री बटुक चतुर्वेदी ने कहा कि लयात्मकता गीत की पहली शर्त है जो उसे गेय बनाती है । बिना लयात्मकता के कविता तो हो सकती है परन्तु गीत नहीं । आज यहाँ हिन्दी भवन के नरेश मेहता गोष्ठी कक्ष में प्रदेश के विभिन्न अंचलों से पधारे श्रेष्ठ गीतकारों ने अपने सुमधुर गीतों का पाठ किया । हिन्दी एवं बुन्देली के समर्थ गीतकार बटुक चतुर्वेदी ने अपने बसन्त ऋतु पर आधारित अपना गीत - "चुप्पी सब टूट गयी, अनबोला बोल गये , मौसम के अलगोजा धरती के कानों में मिश्री सी घोल गये" सुनाया । डाॅ. राजकुमार सुमित्र ने अपना गीत - "तन की उम्र बढ़ी है लेकिन मन तो अभी रसाल है" का पाठ कर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया । ग्वालियर से पधारे सारस्वत अतिथि एवं वरिष्ठ गीतकार राम प्रकाश अनुरागी के गीत - "बज उठेगी यह शरीरी बाँसुरी, प्राण तुम स्वर दो नयन तुम चाव दो" को काफी पसंद किया गया । गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए चर्चित गीतकार डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने भगोरिया मेले के बिम्बों से अलंकृत गीत " जब से लाल गुलाल गाल पर तुमने मल दी है, लगने लगी कामनाओं के कर में हल्दी है" पढ़कर वाहवाही लूटी । मुरैना से पधारे गीतकार भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ का गीत - "कोई सुने या नहीं सराहे मेरे गीत व्यथित मत होना, मेरी आत्मा से निकले हो मेरे पास सदा ही रहना" बहुत सराहा गया । बुरहानपुर से पधारे गीतकार श्री वीरेन्द्र निर्झर ने अपने नवगीत " जीवन से कुछ ऐसे गहरे अनुबंध हो गये, दिन ललित निबंध हो गये" द्वारा सम्मोहित किया । भोपाल की कवयित्री ममता बाजपेई ने अपने गीत - "खतरे में बसन्त है, जागो जागो अब तो, मुद्दा यह ज्वलन्त है, जागो जागो" द्वारा पर्यावरण चेतना का संदेश दिया वहीं कवयित्री मधु शुक्ला ने "हल्दिया सुबहें हुई हैं, कुमकुमी हैं शाम, फागुन आ गया " पढ़कर प्रकृति के वासन्ती चित्र उकेरे । वरिष्ठ कवि ऋषि श्रंगारी ने "तुम्हारे नाम का खत है, तुम्हीं पढ़ने चले आओ" पढ़कर समां बाँधा । गोष्ठी का संचालन कर रहे युवा गीतकार धर्मेन्द्र सोलंकी का गीत " जबसे तुमने गले लगाकर प्यार भरे दो बोल कहे हैं, तबसे जीवन मानसरोवर के कमलों सा खिला हुआ है" भी बहुत पसंद किया गया । इसी क्रम में दतिया के गीतकार राज गोस्वामी ने अपने गीत - "सुख दुख तो जीवन में सबके आते जाते हैं, समय देखते घूरे के दिन फिर जाते हैं" पढ़कर सराहना प्राप्त की । भोपाल के श्री अशोक धमेनियां द्वारा पढ़े घनाक्षरी छंद "ऋतुराज के राज में सखि कछु ऐसा होय" को भी खूब वाहवाही मिली । मुरैना से पधारे कवि श्री देवेन्द्र तोमर का गीत "जब भी मंगल गान सुनाने निकला हूँ घर से, राहें ऐसी रूठीं, मैंने खुद